सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

यीशु मसीह करें खोजें By वनिता कासनियां पंजाबपरमेश्वर को जानना परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जानना परमेश्वर को जानने के लिए क्या करना पड़ेगा? निम्नलिखित यह बताएगा कि आप व्यक्तिगत रूप से किस प्रकार, इसी क्षण, परमेश्वर के साथ एक रिश्ता आरम्भ कर सकते हैं। परमेश्वर के साथ रिश्ता बनाने के लिए क्या करना पड़ता है? बिजली के गिरने का इंतजार? या अपने आप को निःस्वार्थ भाव से धार्मिक कार्यों में लगा लेना? या फिर, एक बेहतर मनुष्य बनना, ताकि परमेश्वर आपको स्वीकार कर ले? नहीं, इनमें से कुछ भी नहीं! परमेश्वर ने बाइबल में यह बहुत स्पष्ट तरीक़े से बताया है कि हम उसे कैसे जान सकते हैं? यह लेख आपको बताएगा कि आप किस प्रकार, इसी क्षण, व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के साथ एक रिश्ता आरम्भ कर सकते हैं।… सिद्धान्त एक: परमेश्वर आपसे प्रेम करता है और आपके जीवन के लिए उसकी एक अद्भुत योजना है। बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम परमेश्वर ने आपको बनाया है। केवल यही नहीं, वह आपसे बहुत प्रेम करता है और चाहता है कि आप उसे अभी से जानें और उसके साथ एक अनंत जीवन बिताएँ। यीशु मसीह ने कहा, “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”1 यीशु मसीह इसलिए आए ताकि हममें से हर एक जन व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर को जान और समझ सके। केवल यीशु ही जीवन में अर्थ और उद्देश्य दे सकते हैं। तो, परमेश्वर को जानने से हमें क्या दूर रखता है?... सिद्धान्त दो: हम सब पाप करते हैं, और हमारे पापों ने ही हमें परमेश्वर से अलग किया है। हम उस अलगाव को, जो कि हमें परमेश्वर से दूर करता है, अपने पापों की वजह से महसूस करते हैं। बाइबल हमें बताती है, “हम तो सब के सब भेड़ों की तरह भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग ले लिया।”2 हमारे दिल की गहराई में, परमेश्वर और उसके तरीकों के प्रति हमारा रवैया शायद एक सक्रिय विद्रोह या फिर एक निष्क्रिय उदासीनता की तरह है। लेकिन ये सब उसी का प्रमाण है जिसे बाइबल पाप कहती है। हमारे जीवन में पाप का परिणाम मृत्यु है -- यानी के, परमेश्वर से आत्मिक अलगाव।3 हालांकि हम अपने प्रयत्न से परमेश्वर के करीब जाने की कोशिश तो करते हैं, पर हम अनिवार्य रूप से असफल होते हैं। परमेश्वर और हमारे बीच एक बहुत बड़ा फासला है। इस चित्र में तीरों के चिह्न यह दर्शाते हैं कि हम किस तरह से अपने प्रयत्नों/प्रयास से परमेश्वर तक पहुँचना चाहते हैं…दूसरों के प्रति अच्छे काम कर के, धार्मिक रसम रिवाज कर के, अच्छा मनुष्य बनने का प्रयास करके, इत्यादि। पर समस्या यह है कि हमारे हर अच्छे से अच्छे प्रयास भी हमारे पापों को छिपाने में, या उन्हें मिटाने में अपर्याप्त होते हैं। परमेश्वर हमारे पाप को जनता है, और यह पाप एक बाधा के समान उनके और हमारे बीच में खड़ा हो जाता है। और, बाइबल कहती है की पाप की सज़ा मृत्यु है जिसकी वजह से हम अनंतकाल के लिए परमेश्वर से अलग हो जाते… ...सिवाय इसके कि परमेश्वर ने हमारे लिए कुछ किया। तो, हम किस प्रकार परमेश्वर के साथ रिश्ता बना सकते हैं? ... सिद्धान्त तीन: हमारे पापों को धोने का एकमात्र तरीका जो परमेश्वर ने हमें दिया है, वह यीशु मसीह है। केवल उनके द्वारा हम परमेश्वर के प्रेम को, और हमारे जीवन के लिए जो उनकी योजना है, उसको जान और अनुभव कर सकते हैं। यीशु मसीह ने हमारे सारे पाप अपने ऊपर ले लिए--यह जानते हुए की हमने कितना पाप किया है, और कितना पाप और आगे करेंगे--और उन्होंने हमारे सारे पापों का भुगतान सलीब पर चढ़ कर, अपनी जान हमारे लिए देकर, चुका दिया। वह हमारी जगह पर मरे, और उन्होंने यह इसलिए किया, क्योंकि वह हमसे बहुत प्रेम करते हैं। “…तो उस ने हमारा उद्धार किया, और यह हमारे धर्म के कामों के कारण नहीं, जो हम ने किए, पर उसकी दया/अनुग्रह के द्वारा है।”4 “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”5 यीशु, “अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप है…सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं।”6 यीशु मसीह हमारे पापों के लिये केवल मरे नहीं, परंतु तीसरे दिन जी भी उठे।7 जब उन्होंने ऐसा किया, उन्होंने निःसंदेह यह सिद्ध कर दिया कि वे जायज़ रूप/पूरे हक़ से, अनंत जीवन का वादा कर सकते हैं – और कि वे ‘परमेश्वर के पुत्र’ हैं तथा परमेश्वर को जानने का एकमात्र रास्ता हैं। इसलिए यीशु ने कहा “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।”8 परमेश्वर तक पहुँचने का कठिन प्रयास करने के बजाय, वह हमें यह बताते हैं कि हम कैसे, इसी क्षण, उनके साथ एक रिश्ता कायम कर सकते हैं। यीशु पुकार कर कहते हैं, “मेरे पास आओ।” “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पीए। जो मुझ पर विश्वास करेगा…उसके ह्रदय में से जीवन के जल की नदियां बह निकलेंगी।”9 यह यीशु मसीह का हमारे प्रति प्रेम ही था जिस कारण उन्होंने सूली/सलीब को सहा। और अब वह हमें अपने पास आने का निमंत्रण देते हैं, ताकि हम परमेश्वर के साथ एक व्यक्तिगत रिश्ता बना सकें। केवल यह जानना कि यीशु मसीह ने हमारे लिए क्या किया और वे हमें क्या दे रहे हैं, पर्याप्त नहीं है। परमेश्वर के साथ एक रिश्ता बनाने के लिए हमें उनको अपने जीवन में स्वागत करना होगा… सिद्धान्त चार: हमें व्यक्तिगत रूप से यीशु मसीह को अपने प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करना होगा। बाइबल कहती है, “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं।10 हम यीशु को विश्वास के द्वारा स्वीकार करते हैं। बाइबल कहती है, “क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है और न कर्मों के कारण; ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।”11 उद्धार, हमारे अच्छे कर्मों का इनाम या नतीजा नहीं है, इसलिए हम घमंड नहीं कर सकते। यीशु मसीह को स्वीकार करने का अर्थ है - यह मानना कि यीशु मसीह परमेश्वर के पुत्र हैं, जिसका वह दावा करते हैं, और फिर उन्हें अपने जीवन में आमंत्रित करना, ताकि वे हमारे जीवन का मार्गदर्शन और निदेश करें।12 यीशु ने कहा, “मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।”13 और यह है यीशु मसीह का निमंत्रण- उन्होंने कहा, “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आ जाऊँगा।”14 आप परमेश्वर के निमंत्रण पर कैसी प्रतिक्रिया करेंगे (क्या जवाब देंगे)? इन दो वृत पर विचार कीजिए : स्वयं द्वारा निर्देशित जीवन ‘स्वयं’ सिंहासन पर विराजमान है। यीशु जीवन से बाहर हैं। निर्णय तथा कार्य सिर्फ स्वयं द्वारा, जिसका परिणाम कुंठा या निराशा है। यीशु मसीह द्वारा निर्देशित जीवन यीशु जीवन और सिंहासन पर विराजमान हैं। ‘स्वयं’ यीशु को मानने वाला/समर्पित यह व्यक्ति यीशु के प्रभाव और निर्देशन को अपने जीवन में देखता है। कौन सा वृत आपके जीवन का प्रतिनिधित्व करता है? कौन से वृत से आप अपने जीवन का प्रतिनिधित्व करवाना चाहेंगे ? यीशु मसीह के साथ एक रिश्ता शुरू कीजिए… आप यीशु को, इसी क्षण, अपने जीवन में ग्रहण कर सकते हैं। याद रखें कि यीशु ने कहा, “देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आ जाऊँगा।”15 क्या आप इस निमंत्रण पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करना चाहेंगे? देखिए कैसे… परमेश्वर आपके हृदय के इरादे में, ना की आपके सही या सूक्ष्म शब्दों में रूचि रखता है। अगर आप अनिश्चित हैं कि क्या प्रार्थना करनी है, तो यह आपको इन्हें शब्दों में डालने में मदद कर सकता है: “यीशु, मैं आपको जानना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप मेरे जीवन में आएँ। मेरे पापों के लिए सूली पर मरने के लिए, ताकि मैं पूरी तरह आपके द्वारा स्वीकार किया जा सकूँ, धन्यवाद। केवल आप ही मुझे वह समर्थ दे सकते हैं जिस से मैं अपने आप को बदलकर वैसा मनुष्य बन सकूँ जैसा आप मुझे बनाना चाहते हैं। मुझे क्षमा करने और अनंत जीवन देने के लिए आपका धन्यवाद। मैं अपना जीवन आपको समर्पित करता हूँ। आप उसके साथ जैसा चाहें वैसा करें। आमीन।” अगर आपने सच्चाई से/पूरे दिल से यीशु को इसी क्षण अपने जीवन में आने को कहा है, तो, जैसा कि उन्होंने वादा किया है, वे आपके जीवन में आ गए हैं। आपने परमेश्वर के साथ एक व्यक्तिगत रिश्ता शुरू कर दिया है। ► मैंने अभी यीशु को अपने जीवन में आने को कहा है ( कुछ मददगार सूचना आगे है )… ► मैं यीशु को अपने जीवन में आने के लिए कहना चाहूँगा, पर मेरा एक प्रश्न है जिसका मैं पहले उत्तर चाहती हूँ … पाद टिप्पणी: (1) यूहन्ना 3:16 (2) यशायाह 53:6 (3) रोमियो 6:23 (4) तीतुस 3:5 (5) यूहन्ना 3:16 (6) कुलुस्सियों 1:15,16 (7) 1 कुरिन्थियों 15:3-6 (8) यूहन्ना 14:6 (9) यूहन्ना 7:37,38 (10) यूहन्ना 1:12 (11) इफिसियो 2:8,9 (12) यूहन्ना 3:1-8 (13) यूहन्ना 10:10 (14) प्रकाशित वाक्य 3:20 (15) प्रकाशित वाक्य 3:20 परमेश्वर के वचन को स्वयं पढ़ें

यीशु मसीह By वनिता कासनियां पंजाब परमेश्वर को जानना परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जानना परमेश्वर को जानने के लिए क्या करना पड़ेगा? निम्नलिखित यह बताएगा कि आप व्यक्तिगत रूप से किस प्रकार, इसी क्षण, परमेश्वर के साथ एक रिश्ता आरम्भ कर सकते हैं। परमेश्वर के साथ रिश्ता बनाने के लिए क्या करना पड़ता है?  बिजली के गिरने का इंतजार? या अपने आप को निःस्वार्थ भाव से धार्मिक कार्यों में लगा लेना? या फिर, एक बेहतर मनुष्य बनना, ताकि परमेश्वर आपको स्वीकार कर ले? नहीं, इनमें से कुछ भी नहीं! परमेश्वर ने बाइबल में यह बहुत स्पष्ट तरीक़े से बताया है कि हम उसे कैसे जान सकते हैं? यह लेख आपको बताएगा कि आप किस प्रकार, इसी क्षण, व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के साथ एक रिश्ता आरम्भ कर सकते हैं।… सिद्धान्त एक: परमेश्वर आपसे प्रेम करता है और आपके जीवन के लिए उसकी एक अद्भुत योजना है। बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम परमेश्वर ने आपको बनाया है। केवल यही नहीं, वह आपसे बहुत प्रेम करता है और चाहता है कि आप उसे अभी से जानें और उसके साथ एक अनंत जीवन बिताएँ। यीशु मसीह ने कहा, “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अप...

🎚️✝️यीशु मसीह✝️ 🎚️

, यीशु मसीह  करें   खोजें By वनिता कासनियां पंजाब परमेश्वर को जानना परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जानना परमेश्वर को जानने के लिए क्या करना पड़ेगा? निम्नलिखित यह बताएगा कि आप व्यक्तिगत रूप से किस प्रकार, इसी क्षण, परमेश्वर के साथ एक रिश्ता आरम्भ कर सकते हैं। परमेश्वर के साथ रिश्ता बनाने के लिए क्या करना पड़ता है?  बिजली के गिरने का इंतजार? या अपने आप को निःस्वार्थ भाव से धार्मिक कार्यों में लगा लेना? या फिर, एक बेहतर मनुष्य बनना, ताकि परमेश्वर आपको स्वीकार कर ले? नहीं, इनमें से कुछ भी नहीं! परमेश्वर ने बाइबल में यह बहुत स्पष्ट तरीक़े से बताया है कि हम उसे कैसे जान सकते हैं? यह लेख आपको बताएगा कि आप किस प्रकार, इसी क्षण, व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के साथ एक रिश्ता आरम्भ कर सकते हैं।… सिद्धान्त एक: परमेश्वर आपसे प्रेम करता है और आपके जीवन के लिए उसकी एक अद्भुत योजना है। परमेश्वर ने आपको बनाया है। केवल यही नहीं, वह आपसे बहुत प्रेम करता है और चाहता है कि आप उसे अभी से जानें और उसके साथ एक अनंत जीवन बिताएँ। यीशु मसीह ने कहा, “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना...

♻ *कन्या पूजन से सभी तरह के वास्तु दोष,विघ्न, भय और शत्रुओं का नाश होता है।*⚱ *नवरात्रि में कन्या पूजन में ध्यान रखे कि कन्याओ की उम्र दो वर्ष से कम और दस वर्ष से ज्यादा भी न हो ।*⚱ *शास्त्रों के अनुसार दो वर्ष की कन्या kanya को कुमारी कहा गया है । कुमारी के पूजन से सभी तरह के दुखों और दरिद्रता का नाश होता है ।*⚱ *तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति माना गया है । त्रिमूर्ति के पूजन poojan से धन लाभ होता है ।*⚱ *चार वर्ष की कन्या को कल्याणी कहते है । कल्याणी के पूजन poojan से जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है ।* ⚱ *पांच वर्ष की कन्या kanya को रोहिणी कहा गया है । माँ के रोहणी स्वरूप की पूजा करने से जातक के घर परिवार से सभी रोग दूर होते है।*⚱ *छः वर्ष की कन्या kanya को काली कहते है । माँ के इस स्वरूप की पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि, यश और सभी क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है ।*⚱ *सात वर्ष की कन्या को चंडिका कहते है । माँ चण्डिका के इस स्वरूप की पूजा करने से धन, सुख और सभी तरह की ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है ।*⚱ *आठ वर्ष की कन्या को शाम्भवी कहते है । शाम्भवी की पूजा करने से युद्ध, न्यायलय में विजय और यश की प्राप्ति होती है ।*⚱ *नौ वर्ष की कन्या को दुर्गा का स्वरूप मानते है । माँ के इस स्वरूप की अर्चना करने से समस्त विघ्न बाधाएं दूर होती है, शत्रुओं का नाश होता है और कठिन से कठिन कार्यों में भी सफलता प्राप्त होती है ।*⚱ *दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा स्वरूपा माना गया हैं। माँ के इस स्वरूप की आराधना करने से सभी मनवाँछित फलों की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते है ।*⚱ *इसीलिए नवरात्र के इन नौ दिनों तक प्रतिदिन इन देवी स्वरुप कन्याओं को अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य से भेंट देना अति शुभ माना जाता है। इन दिनों इन नन्ही देवियों को फूल, श्रंगार सामग्री, मीठे फल (जैसे केले, सेब,नारियल आदि), मिठाई, खीर , हलवा, कपड़े, रुमाल,रिबन, खिलौने, मेहंदी आदि उपहार में देकर मां दुर्गा की अवश्य ही कृपा प्राप्त की जा सकती है ।*By वनिता कासनियां पंजाब⚱ *इन उपरोक्त रीतियों के अनुसार माता की पूजा अर्चना करने से देवी मां प्रसन्न होकर हमें सुख, सौभाग्य,यश, कीर्ति, धन और अतुल वैभव का वरदान देती है।*भगवान श्री राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया।परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की.. परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!! यदि बिना बताए जाऊंगा तो रो रोके जान दे देगी और यदि बताया तो साथ जाने की ज़िद्द करने लगेगी और कहेगी कि यदि सीता जी अपने पति के साथ जा सकती हैं तो मैं क्यों नहीं!!यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ। मैं आपको नहीं रोकुंगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था। परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया।वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!पत्नी का इतना त्याग और प्रेम देखकर लक्ष्मण जी भी रो पड़े। उर्मिला जी ने एक दीपक जलाया और विनती की कि मेरी इस आस को कभी बुझने नहीं देना। लक्ष्मण जी तो चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला जी ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया। मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं। यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे।माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं।माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?हनुमान जी पूछते हैं- देवी! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणि उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा।वे बोलीं- "मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता।आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे।और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है। मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा। इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।"वास्तव में सूर्य में भी इतनी ताकत नहीं थी कि लक्ष्मण जी के जागने से पहले वो उदित हो जाते! एक पतिव्रता तपस्विनी का तप उनके सामने खड़ा था। और मेघनाथ को भी लक्ष्मण जी ने नहीं, अयोध्या में बैठी एक तपस्विनी उर्मिला ने मारा।राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं... कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समपर्ण, बलिदान से ही आया,,*।।जय जय श्री राम।।**।।हर हर महादेव।।*भगवान श्री राम का सेवक वनिता कासनियां पंजाब

♻ *कन्या पूजन से सभी तरह के वास्तु दोष,विघ्न, भय और शत्रुओं का नाश होता है।* ⚱ *नवरात्रि में कन्या पूजन में ध्यान रखे कि कन्याओ की उम्र दो वर्ष से कम और दस वर्ष से ज्यादा भी न हो ।* ⚱ *शास्त्रों के अनुसार दो वर्ष की कन्या kanya को कुमारी कहा गया है । कुमारी के पूजन से सभी तरह के दुखों और दरिद्रता का नाश होता है ।* ⚱ *तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति माना गया है । त्रिमूर्ति के पूजन poojan से धन लाभ होता है ।* ⚱ *चार वर्ष की कन्या को कल्याणी कहते है । कल्याणी के पूजन poojan से जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है ।*   ⚱ *पांच वर्ष की कन्या kanya को रोहिणी कहा गया है । माँ के रोहणी स्वरूप की पूजा करने से जातक के घर परिवार से सभी रोग दूर होते है।* ⚱ *छः वर्ष की कन्या kanya को काली कहते है । माँ के इस स्वरूप की पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि, यश और सभी क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है ।* ⚱ *सात वर्ष की कन्या को चंडिका कहते है । माँ चण्डिका के इस स्वरूप की पूजा करने से धन, सुख और सभी तरह की ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है ।* ⚱ *आठ वर्ष की कन्या को शाम्भवी कह...

आँख मूँद कर भरोसा करने से अलग देखिए कि ईश्वर ने खुद को कैसे वर्णित किया है और वो हमें क्या प्रदान करते हैं।वनिता कासनियां पंजाब द्वारा हमारे लिए, निर्णायक रूप से यह जानना कि ‘क्या परमेश्वर का अस्तित्व है?’, और ‘वह किस प्रकार का है’, तब तक असंभव है, जब तक परमेश्वर स्वयं पहल नहीं करता और अपने आप को प्रकट नहीं करता।परमेश्वर के रहस्योद्घाटन का कोई सुराग ढ़ूँढने के लिए हमें इतिहास के पन्नों पर दृष्टि डालनी होगी। इसका एक स्पष्ट चिह्न है। 2000 साल पहले, पैलेस्टाइन के एक अव्यस्त गाँव के अस्तबल में, एक बच्चे का जन्म हुआ। आज पूरा संसार यीशु मसीह के जन्म का उत्सव मना रहा है, और सही कारण से - उनके जीवन ने इतिहास का मार्ग बदल दिया।लोगों ने यीशु को कैसे देखाहमें बताया गया है कि “आम आदमी यीशु की बातों को प्रसन्नतापूर्वक सुनते थे।” और “वह उन्हें यहूदी धर्म नेताओं के समान नहीं, बल्कि एक अधिकारी के समान शिक्षा दे रहा था।”1मगर, जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि वह अपने बारे में बहुत ही चौकानेवाला और चमत्कारिक बयान दे रहा था। उसने अपने आप को विलक्षण शिक्षक और पैगंबर से ज्यादा महान बताया। उसने साफ शब्दों में कहा कि वह परमेश्वर है। उसने अपनी शिक्षा में अपनी पहचान को मुख्य मुद्दा बनाया।अपने अनुयायीयों से, यीशु ने सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?” तब शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “कि तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।”2 यह सुनकर यीशु मसीह हैरान नहीं हुआ, न ही उसने पतरस को डाँटा। उसके विपरीत, यीशु ने उस की सराहना की!यीशु मसीह अक्सर “मेरे पिता” कहकर परमेश्वर को संबोधित करते थे, और उनके सुननेवालों पर उनके शब्दों का पूरा प्रभाव पड़ता था। हमें बताया गया है, “इस कारण यहूदी और भी अधिक उस को मार डालने का प्रयत्न करने लगे; क्योंकि वह न केवल सब्त (विश्राम दिन) के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कह कर, अपने आप को परमेश्वर के तुल्य ठहराता था॥”3 एक दूसरे अवसर पर उन्होंने कहा, “मैं और मेरे पिता एक हैं।” उसी समय यहूदियों ने उसे पत्थर मारना चाहा। यीशु मसीह ने उनसे पूछा कि उसके किस अच्छे कामों के लिए वे उसे (यीशु को) पत्थर मारने के लिए प्रेरित हुए?” उन लोगों ने उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझे पत्थरवाह नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा के कारण, और इसलिये कि तू मनुष्य होकर अपने आप को परमेश्वर बनाता है।”4यीशु ने अपने बारे में यह कहायीशु ने स्पष्ट रूप से उन शक्तियों का दावा किया, जो केवल परमेश्वर के पास हैं। जब एक लकवा मारा हुआ व्यक्ति छत से उतारा गया, ताकि वह यीशु के द्वारा चंगा हो सके, यीशु ने कहा, “पुत्र, तुम्हारे पापों से तुम्हे क्षमा कर दिया गया है।” यह सुनकर धर्मशास्त्रियों ने तुरंत प्रतिक्रया व्यक्त की कि, “यह व्यक्ति इस तरह की बातें क्यों कर रहा है? वह परमेश्वर का अपमान कर रहा है! परमेश्वर के सिवा, कौन पापों को क्षमा कर सकता है?” तब यीशु ने उनसे कहा, "कौन सा आसान है: इस लकवे से पीड़ित आदमी को कहना कि 'तुम्हारे पाप क्षमा हो गए हैं,' या 'उठो और चलो’?”यीशु ने आगे बोला, “परन्तु जिस से तुम जान लो कि मुझ को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है, उसने उस लकवे के रोगी से कहा, “मैं तुझ से कहता हूँ, उठ, अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।” वह उठा और तुरन्त खाट उठाकर सब के सामने से निकलकर चला गया; इस पर सब चकित हुए।यीशु ने इस तरह के बयान भी दिए: “मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ।”5 और “जगत की ज्योति मैं हूँ।”6 और उसने कई बार यह कहा कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, यीशु उन्हें अनन्त जीवन देगा। “और उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।”7 “और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। वे कभी नष्ट न होंगे।”8उन महत्वपूर्ण क्षणों में, जब यीशु की ज़िंदगी दाव पर लगी थी, इस तरह के दावा करने के लिए, महायाजक ने उस से सीधा सवाल किया: “क्या तू उस परम धन्य का पुत्र मसीह है?”“हाँ, मैं हूँ,” यीशु ने कहा। “और तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दाहिनी और बैठे, और आकाश के बादलों के साथ आते देखोगे।”तब महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़कर कहा, “अब हमें गवाहों का और क्या प्रयोजन है, तुम ने यह अपमान पूर्ण बातें कहते हुए इसे सुना।”9यीशु मसीह का परमेश्वर से सम्बंध इतना गहरा था कि उसने एक मनुष्य के उसके प्रति मनोभावों को, और परमेश्वर के प्रति उनके मनोभावों को, एक बराबर बताया। अतः, उसे जानना प्रभु को जानना था।10 उसे देखना प्रभु को देखना था।11 उसपर विश्वास करना प्रभु पर विश्वास करना था।12 उसे ग्रहण करना प्रभु को ग्रहण करना था।13 उससे बैर रखना प्रभु से बैर रखना था।14 उसका आदर करना प्रभु का आदर करना था।15संभावित स्पष्टीकरणप्रश्न यह है कि, क्या वह सच बोल रहा था?हो सकता है की यीशु ने झूठ बोला, जब उन्होने अपने आप को परमेश्वर कहा। हो सकता है कि वह जानते थे कि वह परमेश्वर नहीं है, और जान-बूझकर उन्होंने अपने सुननेवालों को धोखा दिया, ताकि अपने शिक्षण को वह एक अधिकार दे सकें। कुछ लोग ऎसा सोचते हैं। परंतु इस तर्क में एक समस्या है। जो लोग उसका दैव्य होने का इंकार करते हैं, वो तक इस बात को मानते हैं कि यीशु एक महान नैतिक शिक्षक थे। लेकिन वे इस बात को समझने में असफल रहते हैं कि दोनों बयान परस्पर विरोधी हैं। यीशु मसीह महान नैतिक शिक्षक कैसे होते, अगर, उनकी शिक्षाओं के सबसे महत्वपूर्ण विषय -- उनकी पहचान -- के बारे में वह जान-बूझकर झूठ बोलते ?“जब हम यीशु मसीह के दावों को देखते हैं, तो केवल चार संभावनाएँ दिखाई देती हैं। या तो वह झूठे हैं, या मानसिक रूप से बीमार हैं, वह एक दिव्य चरित्र हैं, या फिर सत्य हैं।”दूसरी संभावना यह है कि यीशु मसीह ईमानदार थे, पर स्वयं को धोखा दे रहे थे। आजकल, उस व्यक्ति को, जो की यह सोचता है के वह भगवान/परमेश्वर है, एक नाम से बुलाया जाता है- मानसिक रूप से विकलांग। पर जब हम यीशु मसीह के जीवन की ओर देखते हैं, तो हमें अपसामान्यता और असंतुलन का, जो कि एक मानसिक रोगी में होता है, कोई प्रमाण नहीं मिलता। बल्कि, हमें यीशु में गहरे दबाव के समय भी, असीम धैर्य दिखाई देता है।एक तीसरा विकल्प यह है कि, तीसरे और चौथे शताब्दियों में यीशु उत्साही अनुयायियों ने उनके कहे हुए शब्दों को बढ़ा-चढ़ा के प्रस्तुत किया, और यदि यीशु उन्हें सुनते तो वह चौंक जाते । और यदि वह वापस आते, तो वह तुरंत उन्हें अस्वीकार कर देते।यह सही इसलिए नहीं है, क्योंकि आधुनिक पुरातत्व इस बात की पुष्टि करते हैं कि मसीह की चार जीवनियाँ उन लोगों के जीवनकाल में लिखी गई थी जिन्होंने यीशु को देखा, सुना और उसके पीछे चले। इन सुसमाचार के खातों में उन विशिष्ट तथ्यों और विशेषताओं का वर्णन है, जिसकी पुष्टि उन लोगों ने की है जो यीशु के प्रत्यक्ष साक्षी थे।विलियम एफ अलब्राइट, जो कि अमेरीका के जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के साथ एक विश्व-प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् हैं, ने कहा, की ऐसा सोचने का कोई कारण नहीं है कि किसी भी सुसमाचार को 70 ए.डी. (ईसा पश्चात्) के बाद लिखा गया था। मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना द्वारा सुसमचर शुरुआत में ही लिखे जाने के कारण, उसका संचलन और प्रभाव अधिक था।यीशु मसीह ना तो झूठे थे, और ना ही मानसिक रूप से विकलांग, ना ही उनको ऐतिहासिक सच्चाई से परे निर्मित किया गया था। केवल एक अन्य विकल्प यह हो सकता है कि यीशु मसीह पूर्ण रूप से सच्चे थे जब उन्होंने यह कहा कि वह परमेश्वर हैं।यीशु मसीह परमेश्वर हैं, इसका क्या सबूत है?कोई भी, कुछ भी दावे कर सकता है। ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने परमेश्वर होने के दावे किए। मैं परमेश्वर होने का दावा कर सकता हूँ, आप भी परमेश्वर होने का दावा कर सकते हैं। पर यदि हम ऐसा करते हैं, तो इस प्रश्न का उत्तर हम सभी को देना पड़ेगा, “हम अपने दावे को साबित करने के लिए क्या ठोस सबूत, या प्रमाण पत्र ला सकते हैं?” मेरे बारे में पूँछे तो, मेरे दावे का खंडन करने में आपको पाँच मिनट भी नहीं लगेंगे। आपके दावे का खंडन करने में भी शायद इससे ज्यादा समय न लगे। पर बात जब नासरत के यीशु मसीह की आती है, तब उनके दावे का खंडन करना इतना आसान नहीं है। उनके पास अपने दावे को पूरा करने का प्रमाण पत्र था। उन्होंने कहा, “…तो चाहे [तुम] मेरा विश्वास न भी करो, परन्तु उन कामों का तो विश्वास करो, ताकि तुम जानो और समझो कि पिता मुझ में है और मैं पिता में हूँ।”16यीशु के जीवन की गुणवत्ता- उनका अद्वितीय नैतिक चरित्रउनका अद्वितीय नैतिक चरित्र उनके दावे से मेल खाता हुआ था। उनकी जीवन शैली इस तरह की थी कि वह अपने शत्रुओं को अपने प्रश्नों द्वारा चुनौती दे सकते थे, “तुम में से कौन मुझे पापी ठहरा सकता है?”17 उन्हें चुप्पी मिली (कोई कुछ ना बोल सका), जब कि उन्होंने उनको संबोधित किया जिन्होंने उनके चरित्र में दोष ढूँढ़ने की चेष्टा की थी।हम पढ़ते हैं कि यीशु मसीह को शैतान द्वारा प्रलोभित किया गया, पर हमने कभी भी उनसे कोई पाप करने की स्वीकारोक्ति नहीं सुनी। उन्होंने कभी भी क्षमा-याचना नहीं की, हालांकि उन्होंने अपने अनुयायियों से ऐसा करने को कहा।यीशु में कोई भी नैतिक विफलता ना होने की भावना, आश्चर्यजनक है, विशेषत: जब हम यह देखते हैं कि वह उन अनुभवों के बिल्कुल विपरीत है जो संतों और मनीषियों ने पूर्णतया, उम्रभर अनुभव किए। नर और नारी जितना परमेश्वर के समीप जाते हैं, उतना ही ज्यादा वे अपनी विफलता/असफलता, भ्रष्टाचार और कमियों से अभिभूत होते हैं। एक चमकते हुए प्रकाश के निकट जितना कोई जाए, उसे अपने को स्वछ करने की आवश्यकता का अधिक एहसास होता है। साधारण मनुष्यों के लिये, नैतिक क्षेत्र में यह सत्य है।यह भी उल्लेखनीय है कि यूहन्ना, पौलुस, और पतरस, जिनको बचपन से ही पाप की सार्वभौमता पर विश्वास करने का प्रशिक्षण मिला था, उन सभी ने यीशु मसीह के पाप रहित होने की चर्चा की “न तो उस ने पाप किया, और न उसके मुंह से छल की कोई बात निकली।”18पिलातुस ने भी, जिसने यीशु मसीह को मृत्युदंड सुनाया, यह पूछा, “इसने ऎसा क्या पाप किया है?” भीड़ की बात सुनने के बाद पिलातुस ने यह निष्कर्ष निकाला, “मैं इस धर्मी के लहू से निर्दोष हूँ; तुम लोग जानो।” भीड़ निर्दयतापूर्वक यीशु को क्रूस पर चढ़ाने की माँग करती रही (परमेश्वर–निन्दा के लिये, परमेश्वर होने का दावा करने के लिये)। रोमी सेना नायक, जिसने यीशु को क्रूस पर चढ़ाने में हाथ बँटाया था, कहा, “सचमुच यह परमेश्वर का पुत्र था।”19यीशु मसीह ने बीमारों को चंगा कियायीशु ने निरंतर अपनी शक्ति/सामर्थ और करुणा का प्रदर्शन किया। उन्होंने लँगड़ों को चलाया, गूंगों से बुलवाया और अंधों को दिखाया, और अनेक रोगियों को चांगई दी। उदाहरणस्वरूप, एक भिखारी, जो जन्म से अंधा था और जिसको सब पहचानते थे, आराधनालय के बाहर बैठता था। यीशु मसीह से चंगाई पाने के बाद, धार्मिक अधिकारियों ने भिखारी से यीशु के बारे में पूछ ताछ की। तब उसने कहा, “एक चीज मैं जानता हूँ। मैं अंधा था, पर अब मैं देख सकता हूँ!” उसने ऐलान किया। उसे आश्चर्य हो रहा था कि इन धर्म के प्राधिकारियों ने इस आरोग्य करनेवाले को परमेश्वर के पुत्र के रूप में कैसे नहीं पहचाना। “जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया कि किसी ने जन्म के अंधे की आँखें खोली हों,” उसने कहा।20 उसके लिए यह प्रमाण स्पष्ट थाप्रकृति को नियंत्रित करने की उनकी क्षमतायीशु मसीह ने प्रकृति पर एक अलौकिक शक्ति का प्रदर्शन किया। केवल शब्दों द्वारा, उन्होंने गलील के समुद्र पर तेज हवाओं और लहरों वाले तूफान को शांत किया। जो नावों पर सवार थे वे अचंभा करके आपस में पूछने लगे, “यह कौन है, कि आँधी और पानी भी उस की आज्ञा मानते हैं?21 एक विवाह में उन्होंने पानी को दाखरस में बदल दिया। उन्होंने 5000 लोगों की भीड़ को पांच रोटियों और दो मछलियों से खाना खिलाया। उन्होंने एक दुखी विधवा के इकलौते बेटे को मृत से जीवित कर दिया।लाज़र, यीशु का मित्र, मर गया था और चार दिनों तक वह कब्र में था। फिर भी यीशु ने उसे पुकारा, “हे लाज़र, निकल आ!” और उसे मृत्यु से वापस जीवित कर दिया, और अनेक लोग इस के गवाह थे। यह सबसे महत्वपूर्ण बात है कि उनके शत्रुओं ने इस चमत्कार से इनकार नहीं किया, बल्कि, उन्हें मारने का फैसला लिया। “यदि हम उसे यों ही छोड़ दे,” उन्होंने कहा, “तो सब उस पर विश्वास ले आएंगे।”22क्या यीशु परमेश्वर है, जैसा कि उन्होंने दावा किया?यीशु मसीह के परमेश्वर होने का सर्वोच्च सबूत उनके मृत होने के बाद उनका पुनरुत्थान (मरे हुओं में से जी उठना) है। अपने जीवनकाल में, पाँच बार यीशु ने स्पष्ट रूप से भविष्यवाणी की कि किस विशिष्ट तरीके से उन्हें मारा जाएगा और इस बात की पुष्टि की कि तीन दिन बाद वह मृत शरीर को छोड़कर फिर जीवित हो जाएँगे।निश्चित रूप से यह एक बड़ा परीक्षण था। यह एक ऐसा दावा था जिसे प्रमाणित करना आसान था। या तो ऐसा होता, या फिर नहीँ। या तो यह उनकी बताई गई पहचान को सच साबित कर देता, या नष्ट कर देता। और, आपके और मेरे लिए जो महत्वपूर्ण बात है, वो यह है - यीशु के पुनरुत्थान से या तो इन बातों की पुष्टि होती, या यह बयान उपहास बन जाते:“मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।”23 “जगत की ज्योति मैं हूं; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”24 और जो मुझ पर विश्वास करेगा, “मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ…”25तो, इस प्रकार अपने ही शब्दों में उन्होंने यह प्रमाण दिया, “मनुष्य का पुत्र, मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा, और वे उसे मार डालेंगे; और वह मरने के तीन दिन बाद जी उठेगा।”26यीशु मसीह कौन है?अगर यीशु मरे हुओं में से जीवित हुए, तो जो कुछ उन्होंने कहा कि वह हमें प्रदान करते हैं, वह उसे पूरा कर सकते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वह निसंदेह पापों को क्षमा कर सकते हैं, हमें अनंत जीवन दे सकते हैं, और इस जीवन में हमारा मार्ग दर्शन कर सकते हैं। वह परमेश्वर हैं, इसलिए अब हम जान गए हैं की परमेश्वर कैसा है और हम उसके निमंत्रण को स्वीकार कर सकते हैं- उन्हें व्यक्तिगत रूप से और हमारे लिए उनके प्रेम को जानने के लिए।“कहना आसान होता है। दावे कोई भी कर सकता है। पर बात जब नासरत के यीशु मसीह की आती है… उनके पास अपने दावे का समर्थन करने के पूरे प्रमाण थे।”दूसरी ओर, अगर यीशु मसीह मरे हुओं में से नहीं जी उठे, तो मसीही धर्म की कोई वैधता या वास्तविकता नहीं है। इसका मतलब ये सब झूठ है, और यीशु केवल एक आम आदमी थे जो कि मर चुका है। और वे लोग जो मसीही धर्म के लिए शहीद हुए, और समकालीन धर्मप्रचारक, जिन्होंने उनका संदेश दूसरों को देने में अपने प्राण तक गँवा दिए, भ्रांतिमूलक मूर्ख थे।क्या यीशु ने सिद्ध किया कि वह परमेश्वर हैं?आइए यीशु के पुनरुत्थान के प्रमाणों पर एक नजर डालें –यीशु ने जितने भी चमत्कारों का प्रदर्शन किया, उन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि वह आसानी से क्रूस से अपने आपको बचा सकते थे, पर उन्होंने ऐसा करना नहीं चुना।उसे बंदी बनाते समय, यीशु के मित्र पतरस ने उन्हें बचाने की चेष्टा की। परंतु, यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख ले…क्या तू नहीं जानता कि मैं अपने पिता से विनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा?”28 स्वर्ग और पृथ्वी, दोनों में, उनके पास इस प्रकार की शक्ति थी। यीशु मसीह ने अपनी इच्छा से अपनी मृत्यु को स्वीकार किया।यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना और गाढ़ा जानायीशु की मृत्यु भीड़ के सामने उन्हें क्रूस पर चढ़ाकर की गई। यह रोमन सरकार का, कई शताब्दियों से चला आ रहा, यातना देकर मृत्यु देने का एक आम तरीका था। यीशु ने कहा कि यह हमारे पापों का भुगतान करने के लिए था। यीशु के विरुद्ध आरोप परमेश्वर-निन्दा (परमेश्वर होने का दावा करने का) था।यीशु को अनेक रस्सियों से बने मोटे कोड़े से मारा गया जिसमें धातु और हड्डी के खंडित टुकड़े जड़े थे। उनका ठट्ठा उड़ाने के लिए, लंबे काँटों से बनाया गया मुकुट उनके सिर पर रखा गया। उन्होंने यीशु मसीह को यरुशलेम के बाहर, उस प्राणदण्ड के पहाड़ पर पैदल चल कर जाने के लिए मजबूर किया, जहाँ उन्हें एक लकड़ी के क्रूस पर लटकाया गया, और उनके पैरों और हाथों को क्रूस पर कीलों से ठोक दिया गया। जब तक वह मर नहीं गए, उस क्रूस पर लटके रहे। यह जानने के लिए कि वह मर चुके हैं या नहीं, उनके पंजर को बरछे से बेधा गया।यीशु के शव को क्रूस से उतारा गया, और उसे सुगन्ध-सामग्री के साथ चादर में लपेटा गया। उन के शव को एक कब्र में, जो चट्टान में खोदी गई थी, रख दिया, और फिर कब्र के प्रवेश द्वार पर एक बड़ा पत्थर लुढ़का कर टिका दिया गया, ताकि द्वार सुरक्षित रहे।सब जानते थे कि यीशु ने कहा था कि वह तीन दिन बाद मृत शरीर से जीवित हो उठेंगे। अतः उनकी कब्र पर प्रशिक्षित रोमन सैनिक पहरेदारों को तैनात कर दिया गया। उन्होंने कब्र के बाहर एक सरकारी रोमन मुहर लगा दी ताकि यह घोषित हो सके कि यह सरकारी संपत्ति है।तीन दिन बाद, वह कब्र खाली थीइन सब के बावजूद, तीन दिन बाद, वह पत्थर जो कि कब्र को सीलबंद कर रहा था, कब्र से कुछ दूर एक ढलान पर पाया गया। यीशु का शरीर वहाँ नहीं था। कब्र में केवल चादर पड़ी थी, बिना शव के।इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि यीशु के आलोचक और अनुयायी, दोनों मानते हैं कि कब्र खाली थी और उनका शरीर गायब था।शुरुआत में इस स्पष्टीकरण को परिचालित किया जा रहा था कि जब पहरेदार सो रहे थे तब उनके शिष्यों ने उनका शरीर चुरा लिया था। पर यह तथ्यहीन लगता है, क्योंकि रोमन सेना के प्रशिक्षित पहरेदारों का इस प्रकार, पहरे के समय, सो जाना मृत्युदंड के अपराध से कम नहीं था।इसके अलावा, प्रत्येक शिष्य को (अकेला करके और विभिन्न भौगोलिक स्थानों में) यातना दी गई और शहीद किया गया, इस दावे के लिए कि यीशु जीवित थे और मरे हुओं में से जी उठे थे। पर वे अपने दावों से नहीं पलटे। कोई भी इंसान उस सच्चाई के लिए मरने के लिए तैय्यार होता है जिसको वह सच मानता है, चाहे वह वास्तव में झूठ हो। परंतु, वह उस बात के लिए नहीं मरना चाहता जो वह जानता है की झूठ है। यदि कोई ऐसा समय है जब एक इंसान सत्य बोलता है, तो वह उसकी मृत्यु की निकटता के समय पर होता है। हर शिष्य अंत तक यीशु के जी उठने का प्रचार करता रहा।हो सकता है कि प्राधिकारियों ने यीशु के शरीर को वहाँ से हटा दिया हो? पर यह भी एक कमजोर संभावना है। उन्होंने यीशु को क्रूस पर चढ़ाया, ताकि वे लोगों को उन पर विश्वास करने से रोक सकें। अगर उनके पास यीशु का शरीर (शव) होता, तो वे उसे यरुशलेम के नगर में उसका परेड करते। एक ही बारी में वे सफलतापूर्वक मसीही धर्म को दबाने में कामयाब हो जाते। कि उन्होंने ऐसा नहीं किया, यह इस बात की महान गवाही देता है कि उनके पास यीशु का मृत शरीर नहीं था।एक दूसरा मत यह है कि महिलाएँ (जिन्होंने सबसे पहले यीशु की खाली कब्र को देखा) व्याकुल और दुख से अभिभूत होकर सुबह के धुंधलेपन में अपना रास्ता भूलकर गलत कब्र में चली गई हों। अपनी पीड़ा में उन्होंने कल्पना कर ली कि यीशु पुनःजीवित हो गए हैं, क्योंकि कब्र खाली थी। पर इस बात में भी संदेह है क्योंकि यदि औरतें गलत कब्र में चली गईं, तो महायाजकों और धर्म के दूसरे दुश्मनों ने सही कब्र पर जाकर यीशु का शरीर क्यों नहीं दिखाया?एक अन्य संभावना, कुछ लोगों के अनुसार, “बेहोशी का सिद्धांत” है। इस सिद्धांत के अनुसार, यीशु वास्तव में मरे ही नहीं। उन्हें भूल से मृत माना गया था, और वास्तव में थकान, दर्द, और खून की कमी के कारण वह बेहोश हो गए थे, और कब्र में ठंडक होने की वजह से उन में चेतना लौट आई। (इस हिसाब से, आपको इस तथ्य को अनदेखा करना होगा कि उसके पंजर को बरछे से बेधा गया था, ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि वह मर चुका था।)“कोई भी इंसान उस सच्चाई के लिए मरने के लिए तैय्यार होता है जिसको वह सच मानता है, चाहे वह वास्तव में झूठ हो। परंतु, वह उस बात के लिए नहीं मरना चाहता जो वह जानता है की झूठ है।”.लेकिन, आइए हम एक क्षण के लिए यह मान लें कि यीशु को जिन्दा गाढ़ा गया और वह बेहोश थे। तो क्या यह विश्वास करना संभव है कि तीन दिन तक वह बिना भोजन या पानी के, या किसी भी प्रकार की देखभाल के, एक नम कब्र में जीवित रहे होंगे? क्या उन में इतनी ताकत थी कि अपने आप को कब्र के कपड़े से बाहर निकाले, भारी पत्थर को कब्र के मुँह से हटाएँ, रोमन पहरेदारों पर विजय पाएं, और मीलों तक उन पैरों पर चलकर जाएँ, जिनको कि कीलों से बेधा गया था? इसका कोई तुक नहीं बनता।तो भी, केवल खाली कब्र ने अनुयायियों को यह विश्वास नहीं दिलाया कि यीशु वास्तव में परमेश्वर थे।केवल खाली कब्र ही नहींकेवल खाली कब्र ने उन्हें यह विश्वास नहीं दिलाया कि यीशु वास्तव में मरे हुओं में से जीवित हुए, वह जीवित थे, और वह परमेश्वर थे। इन सब बातों ने भी उन्हें विश्वास दिलाया - यीशु कई बार दिखाई दिए, जीवित हाड़ माँस के व्यक्ति के रूप में, और उन्होंने उनके साथ खाना खाया, उनसे बातें कीं - विभिन्न स्थानों, विभिन्न समय, विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ उन्होंने बात की। लूका, सुसमाचार के लेखकों में से एक, ने यीशु के बारे में कहा, “उसने अपने आपको बहुत से ठोस प्रमाणों के साथ उनके सामने प्रकट किया कि वह जीवित है। वह चालीस दिनों तक उनके समने प्रकट होता रहा तथा परमेश्वर के राज्य के विषय में उन्हें बताता रहा।”29क्या यीशु मसीह परमेश्वर हैंसुसमाचार के चारों लेखक ये बताते हैं कि यीशु को गाढ़ने के बाद वह शारीरिक रूप से उन्हें दिखाई पड़े। एक बार जब वह शिष्यों को दिखाई दिए, तो थोमा (एक शिष्य) वहाँ नहीं था। जब दूसरे शिष्यों ने थोमा को उनके बारे में बताया तो थोमा ने विश्वास नहीं किया। उसने सीधा-सीधा बोला, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद देख न लूँ और कीलों के छेदों में अपनी उंगलियाँ न डाल लूँ, और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूँ, तब तक मुझे विश्वास ना होगा।”एक सप्ताह बाद यीशु उन्हें फिर से दिखाई दिए। उस समय थोमा भी उनके साथ था। यीशु ने थोमा से कहा, “अपनी उंगली डाल और मेरे हाथों को देख, और अपने हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल। संदेह करना छोड़ और विश्वास कर।” यह सुनकर थोमा ने जवाब दिया, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर।”यीशु ने उससे कहा, “तूने मुझे देखकर, मुझमें विश्वास किया है। वे लोग धन्य हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।”30यीशु आपको क्या प्रदान करते हैंमसीह, जीवन को उद्देश्य और दिशा देते हैं। “जगत की ज्योति मैं हूँ,” वह कहते हैं। “जो मेरे पीछे हो लेगा वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”31कई लोग सामान्य रूप से जीवन के उद्देश्य, और विशेष रूप से अपने स्वयं के जीवन के बारे में, अंधेरे में हैं। ऐसा महसूस होता है जैसे की वो अपने जीवन में बत्ती जलाने वाला स्विच खोज रहे हैं। जो कोई भी अंधेरे में, या किसी अपरिचित कमरे में रहा है, वह असुरक्षा की भावना के बारे में बहुत अच्छे से जनता है। लेकिन, जब बत्ती जलती है, तो एक सुरक्षा की भावना होती है। ठीक ऐसे ही महसूस होता है जब हम अंधेरे से, यीशु मसीह की ज्योति में कदम रखते हैं।दिवंगत विश्लेषी मनोविज्ञानिक, कार्ल गुसतव जंग, ने कहा, “हमारे समय की सबसे नाज़ुक समस्या, खालीपन है। हम सोचते हैं कि हमारे अनुभव, हमारा ज्ञान, रिश्ते, पैसा, सफलता, कामयाबी, प्रसिद्धी, हमें वह आनंद प्रदान करेंगे, जिस की हमें खोज है। पर हमेशा एक खालीपन रह जाता है। ये सब पूरी तरह से संतुष्ट नहीं करतीं। हम परमेश्वर के लिए बनाए गए है, और हमें तृप्ति केवल उन्ही में प्राप्त होगी।”यीशु ने कहा, “जीवन की रोटी मैं हूँ: जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा न होगा, और जो मुझ पर विश्वास करता है वह कभी प्यासा न होगा।”32आप यीशु के साथ एक घनिष्ट संबंध इसी समय स्थापित कर सकते हैं। आप पृथ्वी पर, इस जीवन में परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जान सकते हैं, और मरने के बाद अनंत काल में। यहाँ परमेश्वर का वायदा है, जो उसने हमसे किया है:“क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उसपर विश्वास करे, उसका नाश न हो, परन्तु वह अनन्त जीवन पाए।”33यीशु ने हमारे पापों को, क्रूस पर, अपने ऊपर ले लिया। हमारे पापों के लिए उन्होंने दंड स्वीकार किया, ताकि हमारे पाप उनके और हमारे बीच में दीवार न बन सकें। क्योंकि उन्होंने हमारे पापों का पूरा भुगतान किया, वह हमें पूर्ण क्षमा और अपने साथ एक रिश्ता प्रदान करते हैं।यहाँ बताया गया है कि आप इस रिश्ते की शुरुआत कैसे कर सकते हैं।यीशु ने कहा, “देख, मैं [तेरे हृदय के] द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके घर में प्रवेश करूँगा…।”34आप यीशु मसीह को इसी समय अपने जीवन में आमंत्रित कर सकते हैं। आपके शब्द नहीं, केवल आपकी उसके प्रति प्रतिक्रिया, मुख्य है। यह जानते हुए कि उसने आपके लिए क्या किया है, और क्या कर रहा है, आप उससे कुछ ऐसे कह सकते हैं, “यीशु, मैं आप पर विश्वास करता हूँ। मेरे पापों के लिए क्रूस पर मरने के लिए आपका घन्यवाद। मैं चाहता हूं कि आप मुझे क्षमा करें और अभी इसी समय मेरे जीवन में आइए। मैं आपको जानना चाहता हूँ और आपके पीछे चलना चाहता हूँ। मेरे जीवन में आने के लिए, और मेरे साथ इसी समय से एक रिश्ता बनाने के लिए, आपका धन्यवाद।”अगर आपने यीशु को अपने जीवन में आने का निमंत्रण दिया है, तो यीशु को और अच्छी तरह से जानने में हम आपकी मदद करना चाहते हैं। हमारी मदद के लिए कृपया निःसंकोच होकर नीचे दिए गए किसी भी लिंक पर क्लिक करें।वनिता कासनियां पंजाब

🎚️🪴✝️यीशु मसीह ✝️🪴🎚️ आँख मूँद कर भरोसा करने से अलग देखिए कि ईश्वर ने खुद को कैसे वर्णित किया है और वो हमें क्या प्रदान करते हैं। वनिता कासनियां पंजाब द्वारा  हमारे लिए, निर्णायक रूप से यह जानना कि ‘क्या परमेश्वर का अस्तित्व है?’, और ‘वह किस प्रकार का है’, तब तक असंभव है, जब तक परमेश्वर स्वयं पहल नहीं करता और अपने आप को  यीशु मसीह प्रकट नहीं करता। परमेश्वर के रहस्योद्घाटन का कोई सुराग ढ़ूँढने के लिए हमें इतिहास के पन्नों पर दृष्टि डालनी होगी। इसका एक स्पष्ट चिह्न है। 2000 साल पहले, पैलेस्टाइन के एक अव्यस्त गाँव के अस्तबल में, एक बच्चे का जन्म हुआ। आज पूरा संसार यीशु मसीह के जन्म का उत्सव मना रहा है, और सही कारण से - उनके जीवन ने इतिहास का मार्ग बदल दिया। लोगों ने यीशु को कैसे देखा हमें बताया गया है कि “आम आदमी यीशु की बातों को प्रसन्नतापूर्वक सुनते थे।” और “वह उन्हें यहूदी धर्म नेताओं के समान नहीं, बल्कि एक अधिकारी के समान शिक्षा दे रहा था।” 1 मगर, जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि वह अपने बारे में बहुत ही चौकानेवाला और चमत्कारिक बयान दे रहा था। उसने अपने आप को विलक्...

उन्होंने मां को नहीं बताया था कि वो रेल मंत्री हैं।कहा था कि "मैं रेलवे में नौकरी करता हूं"।वह एक बार किसी कार्यक्रम में आए थे जब उनकी मां भी वहां पूछते पूछते पहुंची कि मेरा बेटा भी आया है, वह भी रेलवे में है।लोगों ने पूछा क्या नाम है जब उन्होंने नाम बताया तो सब चौंक गए " बोले यह झूठ बोल रही है"।पर वह बोली, "नहीं वह आए हैं"।लोगों ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री जी के सामने ले जाकर पूछा," क्या वही है?"तो मां बोली "हां वह मेरा बेटा है"लोग मंत्री जी से दिखा कर बोले "क्या वह आपकी मां है"तब शास्त्री जी ने अपनी मां को बुला कर अपने पास बिठाया और कुछ देर बाद घर भेज दिया।तो पत्रकारों ने पूछा "आपने उनके सामने भाषण क्यों नहीं दिया"तो वह बोले-मेरी मां को नहीं पता कि मैं मंत्री हूं। अगर उन्हें पता चल जाए तो वह लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाऊंगा।..... और उन्हें अहंकार भी हो जाएगा।जवाब सुनकर सब सन्न रह गए।"कहां गए वो निस्वार्थि ,सच्चे ,ईमानदार लोग"हम सदैव स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को अपना आदर्श मानकर कार्य करते रहेंगे"।आज है लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म दिन वनिता कासनियां पंजाब 🙏🙏

उन्होंने मां को नहीं बताया था कि वो रेल मंत्री हैं। कहा था कि "मैं रेलवे में नौकरी करता हूं"। वह एक बार किसी कार्यक्रम में आए थे जब उनकी मां भी वहां पूछते पूछते पहुंची कि मेरा बेटा भी आया है, वह भी रेलवे में है। लोगों ने पूछा क्या नाम है जब उन्होंने नाम बताया तो सब चौंक गए " बोले यह झूठ बोल रही है"। पर वह बोली, "नहीं वह आए हैं"। लोगों ने उन्हें लाल बहादुर शास्त्री जी के सामने ले जाकर पूछा," क्या वही है?" तो मां बोली "हां वह मेरा बेटा है" लोग मंत्री जी से दिखा कर बोले "क्या वह आपकी मां है" तब शास्त्री जी ने अपनी मां को बुला कर अपने पास बिठाया और कुछ देर बाद घर भेज दिया। तो पत्रकारों ने पूछा "आपने उनके सामने भाषण क्यों नहीं दिया" तो वह बोले- मेरी मां को नहीं पता कि मैं मंत्री हूं। अगर उन्हें पता चल जाए तो वह लोगों की सिफारिश करने लगेगी और मैं मना भी नहीं कर पाऊंगा।..... और उन्हें अहंकार भी हो जाएगा। जवाब सुनकर सब सन्न रह गए। "कहां गए वो निस्वार्थि ,सच्चे ,ईमानदार लोग" हम सदैव स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री...

'जय जवान-जय किसान' जैसे ऊर्जावान मंत्र के उद्घोषक, व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में शुचिता, सरलता, सादगी और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक पुरुष, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। उनका त्यागमय जीवन भारतीय राजनीति के लिए एक आदर्श है।'जय जवान-जय किसान' जैसे ऊर्जावान मंत्र के उद्घोषक, व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में शुचिता, सरलता, सादगी और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक पुरुष, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। उनका त्यागमय जीवन भारतीय राजनीति के लिए एक आदर्श है।

'जय जवान-जय किसान' जैसे ऊर्जावान मंत्र के उद्घोषक, व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में शुचिता, सरलता, सादगी और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक पुरुष, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।  उनका त्यागमय जीवन भारतीय राजनीति के लिए एक आदर्श है।'जय जवान-जय किसान' जैसे ऊर्जावान मंत्र के उद्घोषक, व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में शुचिता, सरलता, सादगी और कर्तव्यनिष्ठा के प्रतीक पुरुष, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि वनिता कासनियां पंजाब उनका त्यागमय जीवन भारतीय राजनीति के लिए एक आदर्श है।

सत्य, सद्भाव और अहिंसा के अद्भुत मंत्र द्वारा भारतवासियों को स्वतंत्रता के लिए जागृत करने वाले सादगी एवं सदाचार के प्रतीक राष्ट्रपिता #महात्मा_गांधी जी एवं भारत रत्न, सादगीपूर्ण, दूरदर्शी व निडर व्यक्तित्व, पूर्व प्रधानमंत्री #लाल_बहादुर_शास्त्री जी की संघर्ष पूरे देश को प्रेरित करता है। ''जय जवान जय किसान’' के ओजस्वी नारे ने भारत की समृद्धि व सुरक्षा के दो सबसे बड़े स्तंभ है...जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। वनिता कासनियां पंजाब 🌷🙏

सत्य, सद्भाव और अहिंसा के अद्भुत मंत्र द्वारा भारतवासियों को स्वतंत्रता के लिए जागृत करने वाले सादगी एवं सदाचार के प्रतीक राष्ट्रपिता #महात्मा_गांधी जी एवं भारत रत्न, सादगीपूर्ण, दूरदर्शी व निडर व्यक्तित्व, पूर्व प्रधानमंत्री #लाल_बहादुर_शास्त्री जी की संघर्ष पूरे देश को प्रेरित करता है। ''जय जवान जय किसान’' के ओजस्वी नारे ने भारत की समृद्धि व सुरक्षा के दो सबसे बड़े स्तंभ है... वनिता कासनियां पंजाब जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।🌷🙏